पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती कीमतों पर जब भी चर्चा
की जाती है तब पूरी चर्चा घूम फिर कर पेट्रोल पर ही आकर ठहर जाती है।जैसा आमतौर
लिखा जाता है ‘पेट्रोल-डीज़ल’ वैसे ही डीज़ल
हमेशा पीछे छूट जाता है।
सोशल मीडिया में तरह-तरह के जोक बनते हैं, बाइकों
के अंतिम संस्कार के फोटो वायरल होने लगते हैं। और डीज़ल पर चर्चा ही नहीं हो
पाती। चर्चा नहीं होती कि डीज़ल की कीमतें बढ़ने से किन-किन चीज़ों पर असर पड़ता
है। पेट्रोल महंगा होने से ज्यादातर कार और बाइक चलाने वाले ही प्रभावित होते हैं
जबकि डीज़ल से खाने-पीने की चीज़ों समेत कई जरूरी समान महंगे होते हैं। और सबसे
ज्यादा मार पड़ती है किसानों पर। किसानों की आय बढ़ाने की दावा करने वाली सरकार को
इस बात का आभास ही नहीं है कि इससे किसानों की माली हालत कितनी खराब हो रही है।
वर्तमान युग में पूरी तरह ट्रैक्टरों के माध्यम से ही जुताई का काम किया जाता है
और डीजल की कीमतें बढ़ने से फसल की लागत बढ़नी तय है। ''कितना हास्यसपद है कि किसान
जो फसल पैदा करता है उसका मूल्य सरकार हर साल खुद तय करती है लेकिन उस फसल पर लगने
वाली लागत डीज़ल की कीमतों के साथ बढ़ जाती है और उसकी मार किसान पर ही पड़ती है।''
डीज़ल और पेट्रोल लगातार ऊंचाईयों के नई
कीर्तिमान स्थापित कर रहा है और सरकार बार-बार यही दोहरा रही है कि तेल की कीमतें
उसके हाथ में नहीं हैं लेकिन अगले ही पल सरकार बेनकाब हो जाती है जब कर्नाटक
चुनाव के समय 19 दिन तक कीमतें नहीं बढ़ती और चुनाव के बाद से लगातार 13 दिन तक
कीमतें बढ़ती जाती हैं।
तेल की बढ़ती कीमतों से प्रभावित हो रहे लोगों
और किसानों की परेशानी छिपाने के लिए कुछ बेहूदा तर्क बीजेपी आईटी सेल की तरफ से
वायरल किए जा रहे हैं जिसमें कहा जा रहा है कि मोदी सरकार ईरान का कर्ज चुका रही
है। दरअसल ये सरासर झूठ है बल्कि सच ये है सरकार ने करीब 11 बार एक्साइज ड्यूटी को
बढ़ाय़ा है जबकि महज एक बार घटाया है। जिससे पिछले 4 साल में सरकार ने अपनी और तेल
कंपनियों की जेबें खूब भरी हैं।
एक और बेहुदा तर्क दिया जा रहा है कि लोग
600-700 रुपये की शराब की बोतल आसानी से खरीद लेते हैं और पेट्रोल-डीज़ल खरीदने
में दिक्कत होती है। वो लोग भूल रहे हैं कि पेट्रोल-डीज़ल ‘जरूरत’ है
और शराब ‘शौक’। और जिसकी जरूरतें पूरी हो जाती हैं वही लोग
शौक पूरा कर पाते हैं।
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