आज जब राजनीति और राजनीति में शामिल लोगों के
बीच कटुता बढ़ती जा रही है। तब राजनेताओं के शिष्टाचार के भी कई किस्से इतिहास में
दर्ज हैं। ऐसा ही एक किस्सा है जब राजीव गांधी की हत्या के बाद पत्रकार करन थापर
ने वाजपेयी जी को फोन करके पूछा कि क्या वो राजीव जी के बारे में बात करना चाहेंगे
तो करन को वाजपेयी जी ने घर पर बुलाया और करन से बोले कि कोई और बात करने से पहले
वो कुछ बताना चाहते हैं।
अटल बिहारी ने करन से कहा, “जब राजीव गांधी
प्रधानमंत्री थे तो उन्हें कहीं से पता चला कि मुझे किडनी की बीमारी है जिसका इलाज
विदेश में होगा तब राजीव ने मुझे दफ्तर बुलाया और कहा कि वो मुझे संयुक्त राष्ट्र
जा रहे भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं और उम्मीद जताई कि मैं इस मौके
का इस्तेमाल जरूरी इलाज के लिए करूंगा। मैं न्यूयॉर्क गया और अपना इलाज करवाया और
आज जो ये मैं तुम्हारे सामने बैठा हूं, यही एक कारण है…कि मैं आज
ज़िंदा हूं। वाजपेयी जी ने इसके आगे कहा, “तो तुम्हें समझ में आ गई मेरी दिक्कत
क्या है। करन मैं आज विपक्ष में हूं और लोग चाहते हैं कि मैं एक विरोधी की तरह
राजीव गांधी के बारे में बात करूं। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता मैं सिर्फ वो बात
करना चाहता हूं जो राजीव ने मेरे लिए किया अगर तुम्हारे लिए ये ठीक है तो मैं बात
करने के लिए तैयार हूं अगर नहीं है तो मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है।”
वहीं आज के दौर में हम पक्ष और विपक्ष किसी से
इस व्यवहार की उम्मीद कर ही नहीं सकते। अब तो साल-दर-साल कटुता बढ़ती ही जा रही
है। एक वक्त था जब करियर के शीर्ष पर बैठे प्रधानमंत्री नेहरू संसद में अटल जी
जैसे नए लड़के को जवाब देते थे और बाद में पीठ ठोक कर प्रोत्साहित भी करते थे। उस
ज़माने में वाजपेयी बैक बेंचर हुआ करते थे लेकिन नेहरू बहुत ध्यान से वाजपेयी
द्वारा उठाए गए मुद्दों को सुना करते थे। अब की तरह विपक्ष का मजाक बनाने का रिवाज
तब शायद नहीं था।
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