Page views

Thursday, 22 March 2018

कविता: च से 'चिड़िया'





अकसर आंगन में दिख जाती थी गौरेया
बच्चे उड़ा कर हो जाते थे खुश
जब नहीं दिखती थी तब आटे की लोई से 
बना कर दी जाती थी 'चींचीं'
और बच्चे फिर हो जाते थे खुश
वक़्त की मार और बदलाव की बयार ने
दोनों को उड़ा दिया
बच्चे अब नहीं होते खुश
देखते हैं बस तस्वीरों में फोन की स्क्रीन पर
अब बस याद कर लेते हैं.. च से 'चिड़िया'




No comments: