एक पार्टी देश के लोकतंत्र को लगातार कमजोर करने का काम कर रही है। सभी संवैधानिक संस्थाओं को अपनी तरह से इस्तेमाल कर रही है। और कोई अफसोस कोई सफाई भी नहीं दे रही दरअसल उसे सफाई देने की जरूरत ही नहीं पड़ रही क्योंकि उसका काम करने के लिए बहुत लोग हैं जो बिना कहे सफाई दिए जा रहे हैं। इनमें सिर्फ उसके समर्थक नहीं बल्कि बड़े पत्रकार, बैंकर, बुद्धिजीवी और युवा वर्ग शामिल है, जिन्हें कोई मतलब नहीं कि सरकार रोजगार क्यों पैदा नहीं कर पा रही? उसे नीरव, माल्या, मेहुल चौकसी से राफेल और व्यापम से भी कोई मतलब नहीं वो बस अपनी पार्टी को जीतते हुए देखना चाहता है किसी भी कीमत पर। क्योंकि उसे समझाया दिया गया है कि हम ही तुम्हारी आखरी उम्मीद हैं। बीजेपी का ये नया समर्थक वर्ग उसके हर गलत काम में उसका बचाव करता नजर आता है।जैसे ही कोई सवाल करता है ये तुरंत उसे याद दिलाता है कि जैसा कांग्रेस ने किया वैसा उसके साथ हो रहा है, जो कांग्रेस ने बोया वो काट रही है। अरे भाई कांग्रेस के साथ जो हो रहा है वो ठीक है आप देखिए आपके साथ क्या हो रहा है? आपके लोकतंत्र का आपकी सहमति से गला घोंटा जा रहा है और आप खुश हो रहे हैं, समर्थन में दलीलें दे रहे हैं। कल को अगर बीजेपी इमरजेंसी लगा दे तब भी आप यही कहेंगे कांग्रेस ने भी तो लगाई थी अब बीजेपी ने लगा दी तो क्या गलत किया? कुछ गलत नहीं किया लेकिन जिस तरह से एक आदमी को इतना ताकतवर बना दिया गया है कि चुनाव के बाद अगर पार्टी को बहुमत ना मिले तो कहा जाता है कि अमित शाह हैं ना सरकार बना ही लेंगे। लोग सोचते हैं कि अमित शाह ताकतवर बन रहे हैं तो इससे हमें क्या नुकसान है। वो ये भूल रहे हैं कि कि जो आदमी ताकत पाने के लिए आप से हाथ मिलाएगा है वो ताकत पाने के बाद पलट कर जरूर आएगा।और फिर वो अपने ‘मन की बात’ करेगा। और आपको सुननी ही पड़ेगी।
बीजेपी ने गोवा, मेघालय, मणिपुर और अब कर्नाटक में जिस तरह से सरकार बनाई है उसने ये दिखा दिया कि सत्ताधारी पार्टी जब चुनावों में खेलती है तो वो सिर्फ 11 खिलाड़ियों के साथ नहीं खेलती बल्कि दो अंपायरों के साथ भी खेलती है।
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