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Saturday, 31 March 2018

कोबरा पोस्ट का स्टिंग : मीडिया से 'पत्रकारिता' के सवाल और मीडिया खामोश!




एक ऐसे दौर में जब माफिया टाइप नेता पत्रकारों (सिर्फ पत्रकारों से) से डरे हुए हैं और खुद के डर को कम करने के लिए वे पत्रकारों की हत्या करवा रहे हैं…और मरने वाले पत्रकार की खबरें मीडिया में जगह भी नहीं बना पा रही हैं। तब कोबरापोस्ट के पत्रकार का अपनी जान जोखिम में डालकर बिकाउ मीडिया संस्थानों का सच सामने लाना निश्चित ही काबिले तारीफ है। इस स्टिंग से पता चलता है कि पैसों के लिए देश का मीडिया अपनी आवाज और कलम का भी सौदा कर सकता है।
कोबरापोस्ट के पहले पार्ट में जिन 17 मीडिया संस्थानों के नाम आए उनमें इंडिया टीवी, दैनिक जागरण, अमर उजाला, पंजाब केसरी, हिन्दी खबर, SAB ग्रुप, DNA, 9X टशन, UNI, समाचार प्लस, HNN 24×7, स्वतंत्र भारत, scoopwhoop, Rediff.com, इंडिया वॉच, आज (हिन्दी दैनिक), साधना प्राइम न्यूजशामिल हैं। इन सभी को सौदेबाजी में लिप्त पाया गया है। इन सभी मीडिया संस्थानों से जुड़े बड़े पदों पर काबिज लोगों की बातचीत इस स्टिंग ऑपरेशन में दिखाई गई है


वीडियो में आप देखेंगे कि ये पैसे के लिए सत्ताधारी दल के पक्ष में चुनावी हवा (लोकसभा चुनाव 2019) तैयार करने के लिए राजी होते नजर आए हैं। इसके अलावा, विपक्ष और विपक्षी दलों के बड़े नेताओं का दुष्प्रचार करके चरित्र हनन करने और उनके खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाकर उनकी छवि को खराब करके, सत्ताधारी दल के पक्ष में माहौल बनाने की सौदेबाजी का भी खुलासा हुआ है।

वीडियो में देखेंगे कि ये राहुल गांधी को पप्पू, मायावती को बुआ/बहन जी, अखिलेश को बबुआ जैसे शब्दों से संबोधित कर खबर चलाने के लिए तैयार हैं। ऐसा इसलिए ताकि बार-बार ऐसे शब्दों का प्रयोग करते रहने पर जनता इन्हें गंभीरता से लेना छोड़ दे। आपने सोशल मीडिया पर फेकू नाम से प्रसिद्ध नरेंद्र मोदी को किसी टीवी या अखबार की हेडलाइन में फेकू शब्द कितनी बार देखा है? जिस तरह ये मीडिया घराने कुछ भी दिखाने के लिए तैयार हो गए। उसे देखकर तो ऐसा लगता है कि ये पैसे के लिए दंगे भी करवाने के लिए तैयार हो सकते हैं।
इतने बड़े नामों से सीधे टकराना सबके बस की बात नहीं है। लेकिन स्टिंग की तारीफ तो दूर मीडिया तो इसकी बात तक नहीं कर रहा..जिन मीडिया संस्थानों का इसमें नाम है उनका इसे ना दिखाना समझ में आता है लेकिन जिनके नाम नहीं हैं उनका इससे बचना हैरान करता है…इनके बचने की एक वजह शायद कोबरापोस्ट का दूसरा हिस्सा हो, जिसका अभी सामने आना बाकी है।
कोबरा पोस्ट के स्टिंग की चर्चा से नेताओं का बचना समझ आता है, मीडिया संस्थानों का भी बचना समझ आता है..लेकिन उन संस्थानों में काम कर रहे हजारों लोगों का इस पर खामोशी ओढ़ लेना समझ से परे है। कुछ लोग तो इसपर बोल ही नहीं रहे तो वहीं कुछ लोग उनके ही समर्थन में बोलने लगे हैं जिनका स्टिंग हुआ है। इन लोगों का कहना है कि हमने इनका नमक खाया है या खा रहे हैं तो कैसे बोलें? लेकिन ये लोग भूल रहे हैं कि इस नमक से ज्यादा कीमत उस भरोसे की है जो लोग पत्रकारिता या मीडिया पर करते हैं। हांलाकि इसमें थोड़ी गिरावट जरूर हुई है।

मेरे एक सीनियर हमेशा कहा करते थे कि ‘हमेशा अपने काम से प्यार करो संस्थान से नहीं’ लेकिन जहां हम लगातार काम करते हैं उस जगह से एक लगाव तो हो ही जाता है मुझे भी हो गया था लेकिन अब जब उसी चैनल को पैसे के लिए कुछ भी करने को, कुछ भी चलाने को बोलते हुए सुना तो शर्मिंदगी महसूस हुई। लेकिन एक सच ये भी है कि यहां मैंने बहुत कुछ सीखा है यहां से शुरुआत की है तो खास तो रहेगा ही लेकिन जो गलत है वो गलत है।
सबसे बड़ा सवाल मन में ये उठता है कि किसी घटना या भ्रष्टाचार की खबर तो मीडिया दिखा देगी लेकिन जब मीडिया में ही भ्रष्टाचार हो तो उनकी खबर कौन दिखाएगा? प्रेस फ्रीडम रैंकिंग (2017) में भारत का 180 देशों की सूची में 136वां स्थान है। इससे बुरा क्या हो सकता है?
दरअसल, हम ऐसे दौर में रह रहे हैं जहां लोगों में मीडिया का भरोसा दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है। इसलिए हम सभी को हमेशा अपने अंदर की पत्रकारिता को बचाने की कोशिश करती रहनी पड़ेगी। क्योंकि खतरा बड़ा है। महशर बदायुनी का एक शेर याद आता है, “अब हवाएं ही करेंगी रौशनी का फैसला जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा”।
मीडिया में ही कई लोगों को अक्सर कहते सुना है कि अब पत्रकारिता नहीं बची और ना कोई पत्रकार है। तब मुझे लगता है शायद उन्हें खुद पर ही भरोसा नहीं है। क्योंकि अगर होता तो कम से कम उनकी एक पत्रकार से तो जान-पहचान होती, जो कि वो खुद होते। कोबरापोस्ट के स्टिंग के बाद की चुप्पी सभी के लिए खतरनाक है राजनीति के लिए लोकतंत्र के लिए और पत्रकारिता के लिए तो है ही ।
तू जब राह से भटकेगा, मैं बोलूंगा
मुझको कुछ भी खटकेगा, मैं बोलूंगा
सच का लहजा थोड़ा टेढ़ा होता है,
तू कहने में अटकेगा, मैं बोलूंगा

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