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Friday, 23 March 2018

दिल्ली हाईकोर्ट ने ना केवल आप विधायकों की सदस्यता बचाई है, लोकतंत्र को भी बचाया है !



दिल्ली हाईकोर्ट (HC) ने ये साबित कर दिया कि जब कभी लोकतंत्र की कोई संस्था उसे कमजोर करने की कोशिश करती है तब उसी लोकतंत्र की दूसरी संस्था उसे बचाने और मजबूत करने का काम करती है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी (AAP) के 20 विधायकों को बड़ी राहत देते हुए उनकी सदस्यता बहाल कर दी है। इसके साथ ही राष्ट्रपति के फैसले को रद्द कर दिया और कोर्ट ने चुनाव आयोग को मामले में फिर से सुनवाई करने को कहा है। कोर्ट के फैसले के बाद सभी 20 विधायक बने रहेंगे।
मुख्य चुनाव आयुक्त (ECI) अचल कुमार ज्योति ने अपने कार्यकाल के आखिरी समय में जिस तरह से जाते-जाते जल्दी में फैसला दिया और राष्ट्रपति महोदय ने जिस तरह से उस पर मोहर लगाई वो हैरान करने वाला था। दिल्ली के 20 विधानसभा को बिना विधायक के कर देना क्या छोटी बात है? कई राज्यों में लाभ के पद के मामले चल रहे हैं लेकिन फैसला सिर्फ एक सरकार के खिलाफ ही आता है।
साल 2006 में शीला दीक्षित ने 19 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया। लाभ के पद का मामला आया तो कानून बनाकर 14 पदों को लाभ के पद की सूची से बाहर कर दिया। केजरीवाल ने भी यही किया। शीला के विधेयक को राष्ट्रपति को मंजूरी मिल गई, केजरीवाल के विधेयक को मंजूरी नहीं दी गई।
मार्च 2015 में दिल्ली में 21 विधायक संसदीय सचिव नियुक्त किए जाते हैं। जून 2015 में छत्तीसगढ़ में भी 11 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया जाता है। इनकी भी नियुक्ति HC से अवैध ठहराई जा चुकी है।
इस पर मीडिया रिपोर्टिंग भी हैरान कर देने वाली है। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसला सुनाने से कुछ देर पहले आज तक पर एक पूरा पैनल बहस कर रहा था। चैनल ये मान कर चल रहा था कि फैसला आम आदमी पार्टी (AAP) के खिलाफ ही आएगा। चैनल ने ब्रेकिंग भी चलानी शुरू कर दी और बहस में हिस्सा ले रहे वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने अरविंद केजरीवाल की आलोचना भी शुरू कर दी। अंजना ओम कश्यप भी बुलंद आवाज के साथ ब्रेकिंग न्यूज पढ़ रही थीं।
तभी इसके विपरित खबर आती है और जब शो की एकंर अंजना ओम कश्यप ने बताया कि फैसला तो आम आदमी पार्टी के पक्ष में आया है तब सभी के सुर अचानक बदल गए।
कई लोग कह रहे हैं कि केजरीवाल आदर्श की राजनीति कर रहे हैं, इसलिए उन्हें 21 विधायकों को संसदीय सचिव नहीं बनाना चाहिए था, अगर आदर्श की राजनीति का पैमाना यही है तो बाकि मुख्यमंत्री क्या कर रहे हैं? क्या उनसे ऐसी राजनीति की उम्मीद नहीं है? दरअसल इस तरह के मामले राष्ट्रपति पद की गरिमा और चुनाव आयोग की साख को कम करने का ही काम करेंगे।

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