‘रुको अभी एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से बात कर रहा है’
ये बात भगतसिंह ने कही थी..इसमे पहले क्रांतिकारी खुद भगत सिंह थे और दूसरे थे (Vladimir Lenin) व्लादमिर लेनिन…और ये बात उस समय कही गई थी जब जेलर भगत सिंह को फांसी के लिए बुलाने पहुंचा था।
भगत सिंह लेनिन से किस कदर प्रभावित थे इसका अंदाजा एक और घटना से लगाया जा सकता है। फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे थे। भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में में चक्कर लगा रहे थे। उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब ‘रिवॉल्युशनरी लेनिन’ लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हें किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज्यादा समय न बचा हो। कितना गहरा रहा होगा लेनिन से भगत सिंह का विचारों का रिश्ता, कि अपने आखिरी समय में भी लेनिन को पढ़ना चाहते थे।
जिन व्लादमिर लेनिन से भगत सिंह इतने प्रभावित थे और भगत सिंह से पीएम मोदी खुद को प्रभावित बताते हैं अब वही लेनिन BJP समर्थकों को अखरने लगे हैं। दरअसल त्रिपुरा में BJP ने सभी को चौंकाते हुए विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत दर्ज की और वाम दलों का बरसों पुराना किला ढहा दिया। राजधानी अगरतला से लेकर दिल्ली तक, इस जीत की धमक सुनाई दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे विचारधारा की जीत बताया।
लेकिन जीत का ये उत्साह और खबरें अभी ठंडी भी नहीं हुई थीं कि त्रिपुरा से आए वीडियो और तस्वीरों ने सभी का ध्यान खींच लिया। इस वीडियो में BJP की टोपी पहने कार्यकर्ताओं के बीच एक JCB मशीन लेनिन की एक प्रतिमा को तोड़ने की कोशिश कर रही है।
जिसके बाद मूर्ति तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ और तमिलनाडु में बड़े समाज सुधारक रहे पेरियार की मूर्ति भी तोड़ दी गई वहीं पश्चिम बंगाल के कालीघाट में भारतीय जन संघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति को नुकसान पहुंचाने की बात सामने आई है।
दुनिया में कई जगह सत्ता परिवर्तन के साथ मूर्तियां तोड़ी गई हैं। सत्ता परिवर्तन के साथ ही मूर्तियां न तोड़ी जाएं, इसका अच्छा उदाहरण भारत ही है। देश में दिल्ली और लखनऊ समेत कई जगहों पर आपको रानी विक्टोरिया से लेकर कई वायसराय और तमाम बड़े अंग्रेज अफसरों की मूर्तियां खड़ी दिखाई देंगी। आजादी के बाद ब्रिटिश साम्राज्य की इन निशानियों को तोड़ा नहीं गया, बल्कि शहर के सुरक्षित इलाके में पहुंचा दिया गया। वहीं पाकिस्तान में जिस तरह से सर गंगाराम की मूर्ति को तोड़ा गया, उस पर प्रसिद्ध कहानीकार मंटो ने बाकायदा एक कहानी लिखी थी।
जो लोग मूर्ति तोड़ने का समर्थन कर रहे हैं वे शायद ये भूल रहे हैं कि किसी के विचार मूर्ति तोड़ने या उस व्यक्ति को मारने से खत्म नहीं होते यही भूल अंग्रेजों ने की थी भगत सिंह को फांसी देकर और यही भूल की नाथूराम गोडसे जैसे लोगों ने जिन्होंने महात्मा गांधी को मार दिया। ये सोचकर की इनके विचार थम जाएंगे लेकिन किसी को मारने से किसी के विचार भला रुकते हैं कहीं? मूर्ति तोड़ने वालों को नहीं भूलना चाहिए कि कई देशों में महात्मा गांधी की भी मूर्ति लगी है जिसे कोई और नुकसान पहुंचा सकता है।
दरअसल यही है भारत होने का मतलब जहां सत्ता बदलने के बाद इतिहास को तोड़ा नहीं जाता बल्कि उसे सहेज कर रखा जाता है अगली पीढ़ियों के लिए। लेकिन शायद ये बात कुछ लोगों के समझ में नहीं आएगी।
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