किसानों की इस सादगी भरे विरोध प्रदर्शन को क्यों ना सराहा जाए और क्यों ना उन लोगों को एक सबक के तौर पर देखा जाए जो अपनी मांगें मनवाने के लिए भी कई बार देश में अराजकता का माहौल पैदा करते आए हैं। जाट आरक्षण का आंदोलन और पद्मावत फिल्म विवाद इसी का उदाहरण हैं।
7 मार्च को करीब 35000 किसान नासिक से मुंबई तक का सफर पैदल तय करने निकलते हैं। एक साथ लाइन में जैसे कोई सेना की टुकड़ी निकलती है। बिना हुड़दंग काटे, बिना शोर मचाए। कोई नंगे पैर था तो किसी के एक पैर में चप्पल थी, खून से लथपथ पैर एक साथ आगे बढ़ रहे थे। ये सभी अपने घर वालों को पीछे छोड़कर इस उम्मीद में निकले थे कि बेखबर दुनिया के लोग उनकी बात सुनेंगे।
लेकिन किसी ने इन पर ध्यान नहीं दिया। मीडिया ने भी नहीं। तब चैनल वही कर रहे थे जो अकसर करते आए हैं और वो था किसी जरूरी खबर को दबाने के लिए गैरजरूरी मुद्दों को सामने लाने का काम। इन दिनों कोई किसी नेता को मेकअप पोत कर एंकरिंग करवा रहा था। तो कोई क्रिकेटर शमी की पारिवारिक समस्या को सुलझाने का काम कर रहा था।
लेकिन कहते हैं न कि चुप्पी बहुत शोर करती है, किसानों की चुप्पी ने भी वही किया। जब इनके पैरों के छाले फूटे, खून निकला, लोगों की सहानुभूति बढ़ी तो मीडिया भी जागा। हालांकि उसमें भी किसानों के किसान होने पर शक की खबरें ज्यादा थीं। जैसे कि ये सब किसान नहीं हैं, 35 हजार नहीं इतने किसान आये हैं..वगैरह वगैरह।
सोशल मीडिया पर कुछ BJP समर्थित फेसबुक ग्रुप में कुछ तस्वीरों के जरिए किसानों के आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश की गई। सवाल उठाए गए कि ये खेती छोड़कर यहां क्या कर रहे हैं और इन्हें झंडे और टोपी खरीदने के लिए पैसे किसने दिये? BJP की नेता और सांसद पूनम महाजन ने तो इन किसानों के लिए ये कह दिया कि महाराष्ट्र में प्रदर्शन कर रहे लोग किसान नहीं शहरी माओवादी हैं।
इस तरह के मैसेज बनाने और दूसरों को भेजने वालों थोड़ी तो शर्म करो। किसी की जिंदगी और मौत का मजाक मत बनाओ…क्या कोई एक कैप और एक झंडे के लिए इस गर्मी में 180 किमी पैदल चल सकता है..क्या तुम चल सकते हो?
किसानों ने अपने प्रदर्शन के दौरान मुंबई के लोगों के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए सुबह सड़कों पर जाम न लग जाये इसलिए रात को ही इस यात्रा को आगे बढ़ाया। इसके अलावा हाईस्कूल के छात्रों की सोमवार को परीक्षा होने के कारण भी किसानों ने रात को मार्च निकाला, जिससे छात्र जाम में फंसकर परीक्षा केंद्रों पर देर से ना पहुंचे।
किसानों के इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन का मुंबईवासियों ने भी दिल खोलकर स्वागत किया। किसानों की इस पैदल यात्रा को हर तबके के लोगों का समर्थन मिला। मुंबई पहुंचते ही इन किसानों के लिए हर धर्म के लोग आगे बढ़कर आए और हाथ से हाथ मिलाकर न सिर्फ किसानों की मांगों का समर्थन किया, बल्कि पानी, भोजन समेत कई तरह की व्यवस्थाएं किसानों के लिए कीं।
लेकिन ये किसानों का दुर्भाग्य है कि उन्हें अपने अधिकारों के लिये बार-बार आंदोलन करना पड़ता है। इस बार भी किसानों ने कहा है कि अगर हमारे साथ धोखा होता है तो हम फिर लौटेंगे।
उम्मीद की जानी चाहिए कि अब अन्नदाताओं के साथ धोखा नहीं होगा, लेकिन जिस तरह से इन किसानों ने 180 किमी की पैदल यात्रा की और मांगें मानने के बाद चुपचाप वापस चले गए उससे देश के लोगों का दिल तो जीत ही लिया और विरोध करने का सही तरीका भी बता दिया।
2 comments:
बहुत अच्छा लिखा यादव जी
शुक्रिया
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