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Saturday, 7 July 2018

बेरोजगारों के लिए खुशख़बरी: अब आपको आंकड़ों में रोजगार मिलेगा!



कभी-कभी और कुछ चुनिंदा लोगों को इंटरव्यू देने वाले हमारे प्रधानमंत्री से एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में जब रोजगार का सवाल पूछा गया तो प्रधानमंत्री ने कहा कि दरअसल रोजगार की कमी नहीं है दिक्कत ये है कि किसी के पास रोजगार के बारे में सटीक आंकड़े नहीं हैं। रोजगार मापने के पुराने औजार बेकार हो चुके हैं इसलिए नई अर्थव्यवस्था में रोजगार मापने के दूसरे उपकरण चाहिए। दरअसल सरकार रोजगार मापने के औजार वैसे ही बदलना चाहती है, जिस तरह से उसने जीडीपी मापने के पैमाने बदलकर भारत की वृद्धि दर दुनिया में सबसे ऊपर होने का प्रदर्शन कर रखा है।
दरअसल प्रधानमंत्री के इंटरव्यू के बाद मजाक शुरू हो जाता है सोशल मीडिया पर जोक बनने लगते हैं जैसे प्रधानमंत्री के पकोड़ा बेचने को रोजगार बताने वाले बयान पर हुआ। महीनों इस पर जोक बनते रहते रहे और पक्ष-विपक्ष इसमें ही उलझे रहे लेकिन कितना अच्छा होता कि इस पर बहस की जाती और प्रधानमंत्री से सवाल किया जाता कि अगर कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति पकोड़ा बेचने को मजबूर है तो वो रोजगार नहीं है और अगर किसी को यूपी-बिहार से दिल्ली आकर पकोड़ा बेचने को मजबूर होना पड़ता है तो वो भी रोजगार नहीं है। लेकिन सरकार को इससे कोई मतलब नहीं वो तो बस आंकड़ो में जीतनी हुई नजर आना चाहती है।

हो सकता है सरकार जो नई व्यवस्था लाने वाली है वो दो मोर्चों पर काम करे। एक तरफ आपको आंकड़ों में रोजगार बढ़ता हुआ दिखाया जाएगा और दूसरी तरफ आपको अखबारों में छप रही बेरोजगारों की लंबी लाइनों की तस्वीरों में कुछ कमी आए और रोजगार सिर्फ आकंड़ों पर नजर आए। बिल्कुल वैसे ही जैसे मध्यप्रदेश में आंकड़ों में किसान बहुत खुशहाल दिखाया जाता है लेकिन जब किसान आंदोलन के लिए सड़कों पर होता है तो शुरूआत मध्यप्रदेश से होती है और वहां किसानों की आत्महत्या में भी कोई कमी नहीं आई है।

आंकड़ों के बारे में अमेरिकी कथाकार मार्क ट्वेन शायद अंतिम बात कह गए हैं उनके मुताबिक ‘’झूठ तीन तरह के होते हैं झूठ, सफेद झूठ और आंकड़े।’’ और साहब यहां तो आंकड़े सरकारी होंगे तो हालात का अंदाजा आप खुद लगाइए।

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