पिछले कई दिनों से मेरे इनबॉक्स में और पोस्ट पर कमेंट
करके कुछ लोग बार-बार पूछ रहे हैं कि मंदसौर पर क्यों नहीं लिखते? समझ नहीं आता कि लिखने से क्या हो
जाएगा क्योंकि उन्हें तो बस वही करना है जो वे करते आए हैं। मंदसौर में 7 साल की
बच्ची के साथ जो हुआ वो बेहद डरावना है। इतना डरावना कि बच्ची की हालत देखकर
डॉक्टर भी हिल गए। लेकिन एक तबका है जिसे इस तरह की घटना से कोई फर्क नहीं पड़ता उसे
कोई सहानुभूति नहीं है ना मंदसौर की बच्ची से ना कठुआ की बच्ची से और ना आए दिन
होने वाली रेप की शिकार बच्चियों से जिनकी खबरें मीडिया की सुर्खियां नहीं बन पाती।
क्योंकि उसका काम तो बस ये देखना है कि कौन पत्रकार कौन नेता ऐसा है जिसने कठुआ पर
आवाज उठाई मंदसौर पर नहीं जबकि ये लोग खुद ना कठुआ पर बोलते हैं ना मंदसौर पर।
लेकिन सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त बताते हैं। इन्हें मंदसौर की बच्ची से कोई मतलब नहीं
इन्हें आरोपी इरफान से मतलब है। इसलिए ये लोग कठुआ और मंदसौर की तुलना कर रहे हैं लेकिन
ये भूल रहे हैं कि कठुआ में आरोपियों को बचाने के लिए तिरंगा मार्च नहीं निकाला
होता, पुलिस की ढिलाई नहीं होती तो कठुआ केस भी सुर्खियों में नहीं आता।
मंदसौर
में बहुत कुछ सुकून देने वाला है बस नेताओं के बयानों को छोड़कर। जैसे घटना के
विरोध में मुस्लिम समुदाय सड़कों पर उतरा। वक्फ अंजुमन इस्लाम कमिटी सदर के मोहम्मद
यूनुस शेख के नेतृत्त्व में समुदाय ने मंदसौर एसपी मनोज सिंह को ज्ञापन सौंपा।
उन्होंने कहा कि समुदाय में इस तरह के जघन्य अपराधी के लिए कोई जगह नहीं है।
प्रदर्शन कर रहे लोगों ने मामले की फास्ट ट्रैक सुनवाई और दोषी के लिए मृत्युदंड
की मांग की है। साथ ही फैसला किया कि अब दफ़्न के लिए 2 गज़ ज़मीन भी नसीब न होगी, कोई मौलाना इस हैवान की नमाज़-ए-जनाज़ा
नहीं पढ़ाएगा। मंदसौर
के वकीलों ने घोषणा की है कि वह आरोपी इरफान का केस नहीं लड़ेंगे। जरा सोचिए जैसे
कठुआ में आरोपी के समर्थन में रैली निकली आरोपी विधायक के समर्थन में रैली निकली राम
रहीम आसाराम के समर्थन में भी प्रदर्शन होते रहते हैं अगर ऐसी ही एक रैली इरफान के
समर्थन में निकलती तब?
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