सरकारें निजीकरण को विकास का पैमाना मानती आई
हैं। उन्हें लगता है कि हर चीज का विकास निजी हाथों में पहुंच कर ही होता है…शायद
इसीलिए देश में पहली बार किसी ऐतिहासिक इमारत को निजी हाथों में पहुंचाने का काम
किया गया है। हालांकि अभी लालकिले को 5 साल के लिए दिया गया है लेकिन अक्सर
इस तरह के बदलाव पिछले दरवाजे से ही होते हैं। कहा जा रहा है कि सरकार ने लालकिले
को नए सिरे से विकसित करने के लिए ये कदम उठाया है। लेकिन पुरानी और ऐतिहासिक
चीजों को फिर से विकसित करने की नहीं संरक्षण की जरूरत होती है..और संरक्षण का काम
तो सरकार खुद कर ही सकती है। और ये सरकार की गोद लेने वाली योजना तो समझ से परे है
कौन आदमी, कौन सी कंपनी किसी चीज को गोद लेने के लिए पैसे देती है? फिर
चाहे वो प्रधानमंत्री के कहने पर गांव गोद लेने वाले सांसद हों या बच्चे को गोद लेने की चाह रखने वाले
दंपति। इसकी जगह अगर प्रधानमंत्री देश के बड़े उद्योग घरानों के मालिकों को
लालकिले और ताजमहल जैसी इमारतों को गोद लेने की अपील करते और राजस्थान में ‘भामाशाहों’
के
सम्मान की तर्ज पर उन सभी का लाल किले की देखभाल के लिए उसी लाल किले से सम्मान
करते। लेकिन यहां सरकार ने डालमिया से 25 करोड़ की डील की क्योंकि मौजदा सरकार
व्यापार में ज्यादा भरोसा करती है और डालमिया ग्रुप के सीईओ महेंद्र सिंघी ने कहा
भी है कि ‘हर पर्यटक हमारे लिए एक कस्टामर होगा’
खैर अब जो होगा वो ये कि अब आने वाले 15 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी एक ठेके पर दी हुई इमारत से देश को संबोधित करेंगे और विकसित करने के नाम पर लालकिले में पर्यटकों
को कंपनी कुछ सुविधाएं देगी और उसकी मनमानी कीमत वहां आने वाले पर्यटकों से वसूली
जाएगी। ठीक वैसे ही जैसे निजी बैंक वसूलते हैं जी सर, कैसे हैं सर,
WOULD YOU LIKE A CUP OF TEA टाइप मीठी बातों के लिए और
इसके बदले में एक बचत खाता 5000 रुपये से खोला जाता है और वही बचत
खाता सरकारी बैंक में 1000, 500 या जीरो बैलेंस पर ही खुल जाता है। बस सरकारी बैंक
में कोई आपका नकली मुस्कराहट के साथ स्वागत करने के लिए नहीं होता। हो सकता है कुछ
दिनों बाद जब आप लालकिला घूमने जाएं तो कोई मुस्कराता हुआ चेहरा आप से पूछे WOULD
YOU LIKE.....
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