जेएनयू में देश विरोधी नारे के लिए किसी आम इंसान से कोई नाम पूछो तो एक ही नाम याद होगा- कन्हैया कुमार
नागरिकता कानून को लेकर पूरे देश में प्रदर्शन हुए लेकिन किसी से पूछो तो एक ही जगह याद होगी-शाहीन बाग और एक ही इंसान- शरजील इमाम दिल्ली में दंगों के लिए किसी आम इंसान से पूछो तो उसे भी एक ही नाम याद होगा- ताहिर हुसैनऔर अब कोरोना के लिए निजामुद्दीन मरकज याद करवाया जा रहा है, टीवी पर कोई भी चैनल खोल कर देख लीजिए साफ-साफ नफरत उगली जा रही है और इस घटना को सीधे इस्लाम से जोड़ा जा रहा है पर कोई ये जवाब नहीं दे रहा कि आनंद विहार में मजूदरों की भीड़ किस धर्म की थी और उसे रोकने की जिम्मेदारी किसकी थी?
अब सवाल ये है कि ये एक-एक नाम ही क्यों याद रहते हैं सबको? और जवाब ये है कि हर घटना का मीडिया के द्वारा एक ही विलेन बनाया जाता है..और उसके पीछे छिपाया जाता है असली नाम जिसकी जिम्मेदारी और जवाबदेही सबसे ज्यादा होनी चाहिए...जिससे सवाल सबसे ज्यादा सवाल होने चाहिए....वो है गृहमंत्रालय, वो हैं गृहमंत्री....ये सभी घटनाएं दिल्ली में हुई हैं और दिल्ली में प्रशासनिक जिम्मेदारी गृहमंत्री की होती है आपने कभी किसी भी चैनल पर गृह मंत्री का फोटो लगाकर किसी एंकर को उनसे सवाल पूछते हुए देखा है? दिल्ली के दंगे रोकने की जिम्मेदारी किसकी थी? आनंद विहार और निजामुद्दीन दोनों जगह भीड़ जमा हुई इसे रोकने की जिम्मेदारी किसकी थी?कल से सभी चैनल हिंदू-मुस्लिम कर रहे हैं कोई पूछेगा कि सरकार टेस्ट की संख्या क्यों नहीं बड़ा पा रही है, डेढ़ अरब की आबादी में जितने टेस्ट हमने अब तक किए हैं उतने 5 करोड़ की आबादी वाला दक्षिण कोरिया दो दिन में कर लेता है?
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