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Wednesday, 1 April 2020

कोरोना के लिएु मीडिया को विलेन मिल चुका है...अब खतरा भी कम है !

जेएनयू में देश विरोधी नारे के लिए किसी आम इंसान से कोई नाम पूछो तो एक ही नाम याद होगा- कन्हैया कुमार
नागरिकता कानून को लेकर पूरे देश में प्रदर्शन हुए लेकिन किसी से पूछो तो एक ही जगह याद होगी-शाहीन बाग और एक ही इंसान- शरजील इमाम दिल्ली में दंगों के लिए किसी आम इंसान से पूछो तो उसे भी एक ही नाम याद होगा- ताहिर हुसैन
और अब कोरोना के लिए निजामुद्दीन मरकज याद करवाया जा रहा है, टीवी पर कोई भी चैनल खोल कर देख लीजिए साफ-साफ नफरत उगली जा रही है और इस घटना को सीधे इस्लाम से जोड़ा जा रहा है पर कोई ये जवाब नहीं दे रहा कि आनंद विहार में मजूदरों की भीड़ किस धर्म की थी और उसे रोकने की जिम्मेदारी किसकी थी?
अब सवाल ये है कि ये एक-एक नाम ही क्यों याद रहते हैं सबको? और जवाब ये है कि हर घटना का मीडिया के द्वारा एक ही विलेन बनाया जाता है..और उसके पीछे छिपाया जाता है असली नाम जिसकी जिम्मेदारी और जवाबदेही सबसे ज्यादा होनी चाहिए...जिससे सवाल सबसे ज्यादा सवाल होने चाहिए....वो है गृहमंत्रालय, वो हैं गृहमंत्री....ये सभी घटनाएं दिल्ली में हुई हैं और दिल्ली में प्रशासनिक जिम्मेदारी गृहमंत्री की होती है आपने कभी किसी भी चैनल पर गृह मंत्री का फोटो लगाकर किसी एंकर को उनसे सवाल पूछते हुए देखा है? दिल्ली के दंगे रोकने की जिम्मेदारी किसकी थी? आनंद विहार और निजामुद्दीन दोनों जगह भीड़ जमा हुई इसे रोकने की जिम्मेदारी किसकी थी?कल से सभी चैनल हिंदू-मुस्लिम कर रहे हैं कोई पूछेगा कि सरकार टेस्ट की संख्या क्यों नहीं बड़ा पा रही है, डेढ़ अरब की आबादी में जितने टेस्ट हमने अब तक किए हैं उतने 5 करोड़ की आबादी वाला दक्षिण कोरिया दो दिन में कर लेता है?

सरकारें चाहें तो कुछ भी कर सकती हैं पर करती क्यों नहीं? क्योंकि आप नहीं चाहते!

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'सरकार कर तो रही है और कितना करे?इतनी बड़ी आबादी में फैसले लेने कोई आसान काम नहीं है। ये सभी बेवकूफ लोग हैं जो गांव भाग रहे हैं, इतनी जल्दी तो भूखा कोई नहीं मरता, सरकार सबके लिए खाने का इंतजाम कर तो रही है, टाइम लगता है''इसी तरह की बेतुकी दलीलें दी जा रही हैं कुछ पत्रकारों और सरकार के समर्थकों की तरफ से....वैसे ये सरकारें इन्हीं लोगों के लिए इन्हीं के वोट से बनाई जाती हैं...यही कम पढ़े-लिखे लोग किसी पढ़े लिखे को चुनते हैं जिससे वो इनके लिए, जो सही हो, या इन्हें ध्यान में रखकर फैसले लें लेकिन सभी सरकारें फैसले लेते वक्त इन्हें ही भूल जाती हैं...जबकि वोट दें ये, भूखे रहें ये, लाठी खाएं ये और बदनाम हों तो भी यही लोग।
लॉक डाउन हुआ तो फैक्ट्री,कंपन्नियां बंद हुईं और जब ये घर जाने लगे तो ट्रेन,बस सब बंद...कितने ही दिनों से ये सड़कों पर हैं अब जब शोर मचा तो बसें चला दी गईं, ट्रेन अब भी  बंद हैं अगर इन्हें ध्यान में रखकर फैसला लिया होता तो जैसे चीन और इटली से पूरे खतरे के साथ लोगों को एयर लिफ्ट किया था, उनकी स्क्रीनिंग कर, 14 दिन आइसोलेशन में रखकर देश में उनके घर जाने दिया वैसे ही इन मजदूरों के साथ भी किया जा सकता था....इस पर कई लोग कह रहे हैं कि इतने लोगों को 14-15 कहां रखा जाए,कैसे इनकी जांच हो? 


तो आपको अगर कुंभ का मेला याद हो तो उसकी तैयारी भी याद होंगी जिसकी पूरी दुनिया में तारीफ हुई थी....सरकार दिल्ली,नोएडा,गाजियाबाद कहीं भी एक कैंप लगा सकती है और कुंभ की तैयारी जिन लोगों ने की थी उन्हें इसमें लगाया जा सकता है...सरकारें चाहे तो कुछ भी कर सकती हैं नहीं यकीन है तो चुनाव का वक़्त याद कर लीजिए किसी बड़े नेता का चुनाव का मंच 4 घंटे में तैयार हो जाता है वो भी AC लगा हुआ।लेकिन क्या जरूरत है सरकार को भी अस्पताल बनवाने की जब हम मंदिर मस्जिद से ही खुश हैं। अब 
सरकार की प्राथमिकता देखिए, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर प्रेस कॉफ्रेंस कर कहते हैं कि दर्शकों की मांग पर हमने रामयण शुरू की है...मीडिया इस खबर को प्रमुखता देता है, फिर कुछ लोग मांग करते हैं कि महाभारत भी दिखाया जाए...मंत्री जी फिर सुन लेते हैं और महाभारत का भी प्रसारण शुरू हो जाता है हम जैसे लोग सवाल उठाते हैं तो सरकार के समर्थक कहते हैं कि आपको रामायण से क्या दिक्कत है?अरे भई रामायण से नहीं, सरकार की प्राथमिकताओं से दिक्कत है?जो कुछ दिन बाद तुम्हें भी होगी जब जान पर बन आएगी।