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Sunday, 23 December 2018

गुनहगार छूट रहे हैं...न्याय देवी को अपनी आंखों पर बंधी पट्टी खोलने का वक्त आ गया है


जब न्याय देवी की आंखों पर पट्टी बांधी गई होगी तो शायद उस समय ये मंशा रही होगी कि कानून अपने लंबे हाथों से सबूत लेकर आएगा और अदालतों में बैठे न्यायधीश आंखे बंद कर निष्पक्ष होकर फैसला सुनाएंगे। लेकिन अब कानून के हाथ छोटे होते जा रहे हैं और अब वक्त आ गया है कि न्याय देवी को पट्टी खोल देनी चाहिए नहीं तो जैसे 13 साल चले हिंट एंड रन केस के आरोपी छूट गए, आरुषि को किसने मारा ये आज तक पता नहीं पता चल सका,2G स्पेक्ट्रम के आरोपी बरी हो गए और अब सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया गया और अगर ये पट्टी नहीं खोली गई तो ऐसे सबूतों के कमी के चलते गुनहगार छूटते रहेंगे, फिर से गुनाह करने के लिए।
फैसला के वक्त जज द्वारा कही बात जजों की मजबूरी दिखाती है। सीबीआई के जज एसजे शर्मा ने कहा, ''मैं मारे गए तीन लोगों के परिवार के लिए बुरा महसूस कर रहा हूं, लेकिन लाचार हूं। अदालत सबूतों के आधार पर फ़ैसला करती है...दुर्भाग्य से इस केस में सबूत ग़ायब हैं.''
निश्चित ही सबूत जमा करना अदालतों का काम नहीं है ये काम पुलिस का है और पुलिस पर राजनैतिक दवाब कितना होता है ये किसी से छिपा नहीं है। क्या ये भद्दा मजाक नहीं है कि इतने साल हुई सुनवाई के दौरान करीब 200 गवाह पेश किए गए और इसमें से 92 गवाह मुकर गए।
इनमें से एक गवाह का नाम है आजम खान, जिसका कहना है कि राजस्थान पुलिस उस पर दबाव डाल रही है. आजम खान का आरोप है कि सोहराबुद्दीन शेख, गुजरात के पूर्व मंत्री और नरेंद्र मोदी के आलोचक हरेन पांड्या की हत्या में शामिल थे और उन्होंने ये हत्या गुजरात पुलिस अफसर डीजी बंजारा के कहने पर की।
इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह मुख्य आरोपियों में से एक थे. एनकाउंटर के समय गुजरात के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया का नाम मुख्य आरोपी में शामिल था. लेकिन कुछ साल बाद उन्हें क्लीनचि‍ट दे दी गयी. हाल ही में गृह मंत्रालय ने सोहराबुद्दीन मामले की जांच करने वाले गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी रजनीश राय को सस्पेंड कर दिया।
ये सस्पेंशन हैरान करने वाला है, क्योंकि ये वही राय हैं जिन्होंने इस मामले में 3 आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा, गुजरात कैडर के राजकुमार पांडियन और राजस्थान कैडर के दिनेश एमएन को गिरफ्तार किया था

दूर से देखेंगे तो सबकुछ सामान्य दिखेगा राय का निलंबन भी, आरोपियों का छूटना भी, क्योंकि मीडिया में सबकुछ सामान्य बना दिया गया है। लेकिन 92 गवाहों का अपनी गवाही से मुकर जाना सामान्य बात नहीं है। और जजों का पीड़ितों के लिए सिर्फ बुरा महसूस करना काफी नहीं है बल्कि ये लाचारी है सिस्टम की, ये लाचारी है उस पुलिस की जो राजनैतिक दवाब से आजाद ही नहीं होना चाहती और अक्सर उसी का शिकार बन जाती है और कहीं कोई सुबोध भीड़ के लिए भीड़ के हाथों शहीद कर दिया जाता है। 

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