Page views

Tuesday, 9 October 2018

#MeToo से डरिए मत, इसका साथ दीजिए ये आपके लिए ही तो है...


#MeToo अब अखबार के आखिरी पन्ने से निकलकर पहले पन्ने तक आ पहुंचा है। लेकिन ये सफर कोई एक दिन का नहीं है, फेसबुक पोस्ट या महज ट्वीटभर का भी नहीं है। ये मुश्किल सफर सालों का है, बस वो महौल अब मिला है। जिसमें लड़कियां खुल कर बोल पा रही हैं और सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल कर रही हैं।

दरअसल ये आवाज उठाने वालों की सफलता है और आवाज दबाने वालों की मजबूरी। कि उन्हें अनमने मन से ही सही पर उनके सुर में सुर मिलाना पड़ रहा है। इस कैंपेन के जरिए रोज होते नए खुलासे और हर दिन कथित शरीफों के चेहरे से उतरते नकाबों से कुछ लोग भयभीत नजर आ रह हैं। अगर इस सच्चाई और दो-तीन दिन के कैंपेन से डर लग रहा है तो इतना डर जरूरी है, क्योंकि ये लड़कियां इसी डर के साथ सालों से जीती आ रही हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि अब तो लड़कियों को देखने से भी डर लगता है, सुंदरता की तारीफ भी करने में सोचना पड़ेगा। जो लोग ऐसा सोचते हैं उन्हें शायद घूरने और निहारने में फर्क ही नहीं पता। ताजमहल को आप निहारने जाते हैं घूरने नहीं, और उसे अपना बनाने का ख्याल भी नहीं आता होगा। लेकिन कुछ लोग होते होंगे जो उसे कब्जाने का सोचते होंगे लेकिन नहीं कर पाते, क्योंकि उनकी औकात से बाहर है वो। और ये कैंपेन भी उन्हीं लोगों के लिए है जिससे ये लोग खिलते हुए फूल को सिर्फ निहार सकें उसे तोड़कर मुर्झाने की कोशिश ना करें।

कुछ लोगों को ये भी शिकायत है कि जब हुआ तब क्यों नहीं बोले अब क्यों बोल रहे हैं? जब हम किसी कंपनी में काम कर रहे होतें हैं तो उसकी कमियों के बार में उस समय नहीं बोल पाते हालांकि उस समय बोलना चाहिेए लेकिन बहुत सी आर्थिक मजबूरियां होती हैं इसीलिए जब हम वो कंपनी छोड़ते तो इस्तीफे में ये मेंशन कर देते हैं कि हम तो जा रहे हैं लेकिन आप यहां गलत थे। इसमें गलत क्या है? किसी को न्याय देने के लिए अदालतें भी तो सालों लगा देती हैं तो उसे भी तो न्याय ही माना जाता है। और देरी का ये सवाल तो अनुराग कश्यप से या उन जैसे कईयों से पूछा जाना चाहिए कि जब आपके सामने किसी के साथ कुछ गलत हो रहा था तो आप क्यों चुप थे आप जिस वजह या डर से चुप थे वो वजह या डर उस लड़की से तो कम ही रहा होगा जो उस दर्द से गुजरी होगी। लेकिन इस लड़ाई को ज्यादा महीन बनाने से भी बचना होगा, अगर अनुराग कश्यप और उन जैसे लोग गलती मान रहे हैं और अब साथ आ रहे हैं तो इसका भी स्वागत करना चाहिए। बड़ी बात ये है कि गलत के खिलाफ देर से ही सही लेकिन विरोध होना चाहिए। गांधी जी ने भी एक बार कहा था कि महिलाओं को ऐसी घटनाओं को छिपाने का रिवाज खत्म करना होगा। लोग खुलकर चर्चा करेंगे तो ऐसी घटनाएं खत्म होंगी।

आखिर में इस कैंपेन के खिलाफ कुतर्क गढ़ने और इसके जवाब में नया हैशटैग ट्रेंड कराने वालों के लिए बस इतना ही, कि अगर आप सही हैं तो डरिए मत इसका साथ दीजिए आखिर ये कैंपेन उस माहौल के लिए ही तो है जिसमें आपकी बहन, बेटी, बहू या आपकी कोई भी महिला मित्र जिसे आप सैकड़ों चिंताओं और हिदायतों के साथ काम पर भेजते हैं वो वहां खुलकर सांस ले सके, वहां बेफिक्री से काम कर सके, बार-बार अपने दुपट्टे की चिंता किए बगैर, किसी की घूरती नजरों की चिंता के बगैर...