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Sunday, 14 January 2018

‘मुक्काबाज’ अनुराग कश्यप का सच्चा देशप्रेम ‘भारत माता की जय’

एक फिल्म आई है मुक्काबाज। बहुत दिनों बाद खेल को लेकर एक अच्छी और शानदार फिल्म आई है,ये फिल्म खेल के ऊपर बनी अब तक की फिल्मों से इसलिए भी अलग है क्योंकि हर फिल्म में आखिर में खेल और खिलाड़ी जीतते हुए ही नजर आते हैं। लेकिन इसमें ऐसा नहीं है। फिल्म में अनुराग कश्यप विनीत समेत सभी ने खूब महनत की है और उनकी ये महनत पूरी फिल्म पर दिखाई भी देती है।



लेकिन इन सबसे इतर फिल्म में और भी कई चीजें हैं जिनके लिए ये फिल्म लंबे समय तक याद की जाएगी। फिल्म में दिखाया गया कि कैसे एक खिलाड़ी जो सिर्फ खेलना चाहता है, लेकिन खेलों में हो रही राजनीति का शिकार होता है और उसका करियर बनते बनते रह जाता है, इसके साथ ही फिल्म गोरक्षा के नाम पर हो रही गुंडागर्दी और जातिवाद समेत कई मुद्दों को उठाती है, और  जातिवाद को लेकर फिल्म में एक अलग और दिलचस्प पहलू दिखाया गया है और वो ये है कि जातिवाद रिवर्स भी होता है जैसे एक रेलवे कर्मचारी यादव जी एक क्षत्रिय को सिर्फ इसलिए परेशान करते हैं कि उसके पुरखों ने उनके पिता जी को परेशान किया था, पूरी फिल्म पिछले सालों में घटी घटनाओं पर तगड़ा व्यंग है और फिल्म के गानों के बोल भी व्यंग करते जाते हैं, जैसे फिल्म में एक कविता है...
'खाकी रंग दीवारों पर लटकती गांधी की फोटो के पीछे से निकलती छिपकली
हाय कपटी हाय कमीनी जहर वाली छिपकली
जब कोई पतंगा पास से गुजरता है
धर दबोच लेती है पंख नोच लेती है, जिंदा निगल जाती है
फिर बड़े सलीके से जैसे कुछ हुआ ही ना हो, जैसे कोई मरा ही ना
रेंगती वापस फोटो के पीछे लौट जाती है छिपकली'
कहा जाता कि हर फिल्म में END में सब ठीक हो ही जाता है, लेकिन इस फिल्म में ऐसा नहीं होता क्योंकि ये फिल्म है ही नहीं ये ‘हकीकत’ है जिसे अनुराग कश्यप ने गड़ा है, और पूरी फिल्म का मर्म फिल्म खत्म होने के बाद दिखाई देता है जब पर्दे पर वो लिखा आता है जिसे आजकल हर समस्या का हल बताया जा रहा है
‘’भारत माता की जय’’

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