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Thursday, 7 December 2017

बधाई हो धर्म के ठेकेदारों आपका लगाया पेड़ ‘फल’ देने लगा है



पिछले कुछ सालों में हिंदू-मुस्लिम और लव जिहाद के नाम पर जो नफरत के बीज बोए जा रहे थे उस नफरत के पेड़ पर अब फल आने लगे हैं और पहला फल राजस्थान में मिला है, जहां एक आदमी ने लव जिहाद के नाम पर एक मुस्लिम को दिनदहाड़े काट दिया और उसे आग के हवाले कर दिया। इस पूरी घटना का उसने वीडियो भी बनाया..अजीब बात है कि लव जिहाद का जो शिकार बना है वो एक बुजुर्ग इंसान है जिसका नाम भट्टा शेख बताया जा रहा है। शायद उसे लव जिहाद का मतलब भी न पता हो। तभी जब उसपर धारदार हथियार से पहला हमला हुआ तो गिड़गिड़ाते हुए अपना कसूर पूछता है.. क्या हुआ सर? लेकिन बेरहम हमलावार लगातार हमला करता रहा और भट्टा शेख चीखता रहा।

दरअसल, ये हमला किसी इंसान ने नहीं....बल्कि एक विकृत मानसिकता ने किया है। क्योंकि अगर कोई इंसान हमला करता है तो उसे मारने के बाद चिंता या परेशानी होती है। लेकिन इस आदमी ने मारते समय न कोई दया दिखाई और न मारने के बाद इसे कोई पछतावा हुआ, बल्कि इसके उलट उसे ऐसा करने पर गर्व है।


मारने वाला शख्स शंभुनाथ इस हद तक नफरत का शिकार है कि एक निहत्थे बुजुर्ग को काटकर और थोड़ी सी जान बची होने पर जलाकर कैमरे पर साफ कहता है कि उसे नहीं पता कि उसने सही किया या गलत किया, पर उसे जो ठीक लगा, वो कर दिया। वीडियो में ये शख्स एेसे ही और भी अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहता है।

वीडियो-



क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी मानसिकता को पिछले कुछ समय में धर्म के कथित ठेकेदारों और कुछ नेताओं ने अपने वोट बैंक के लिए विकृत रुप दे दिया है। इस हत्या के लिए क्या अकेला यही आदमी दोषी हैनहीं बल्कि दो लोगों के सहज प्रेम को जिहाद ठहरा कर हिंदू युवकों को सरेआम हत्याओं को उकसाने वाले ज्यादा दोषी हैंअसल गुनहगार वे लोग हैंजिन्होंने यह ज़हर भरा है। अब कहां हैं साध्वी और साक्षी महाराज जैसे लोग जो लव जिहाद को हिंदू धर्म के लिए खतरा बताकर युवाओं को भड़काने का काम करते आ रहे हैं और कहां हैं वे स्टार पत्रकार जो लव-जिहाद को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता रहे थे। ये घटना तो उस नफरत के पेड़ का पहला पका हुआ फल है..जो आज खुद गिरा है..लेकिन अगर इस पेड़ को जल्द ही ना काटा गया तो इस तरह के और भी फल देखने को मिलेंगे जो कहीं और अभी पकने की तैयारी में होंगे।

जिसके नाम पे करते हो
ये खून खराबा दिन रात ही तुम
वो भी तुमसे पूछेगा
किस ज़ाहिल की औलाद हो तुम
सोचो क्या आज़ाद हो तुम?
भीड़ का हिस्सा बनते हो
बिन जाने बिन समझे ही तुम
आवाम हो इस मुल्क की या
उमड़ता कोई फ़साद हो तुम
सोचो क्या आज़ाद हो तुम?

Sunday, 5 March 2017

कमान में लौटते तीर और गुरमेहर की आजादी...

एक कहावत है कि कमान से निकला तीर और मुंह से निकली बात कभी वापस नहीं आती...तीर का तो पता नहीं लेकिन मुंह से निकले शब्द अब वापस होने लगे हैं...गुरमेहर के समर्थन में सहवाग के लिए बोले गए कड़े शब्द जावेद अख्तर ने वापस ले लिए हैं...वहीं सहवाग भी अब इस मुद्दे पर बैकफुट पर खेलते नजर आ रहे हैं...जो आते ही छक्का मारने की कोशिश में आउट हो गए थे...उन्होंने कहा है कि गुरुमेहर को लेकर दिया गया उनका बयान सिर्फ मजाक था।

दरअसल गुरमेहर पर सभी ने सहवाग की तरह ही बिना सोचे समझे कमेंट करना शुरू कर दिया था....मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं जंग ने मारा है’…इस बात को समझना क्या इतना मुश्किल है...जिन लोगों ने गुरमेहर के विरोध में सोशल मीडिया की सभ्य भाषा में देशप्रेम दिखाया था...काश वो लोग एक बार उस वीडियो को पूरा देख लेते...जिसमें गुरमेहर बिना बोले तख्तियों के माध्यम से शांति की बात कर रही है...तो शायद वो भी भारत और पाकिस्तान के बीच शांति के अभियान में शामिल हो जाते...



इस वीडियो में गुरमेहर बताती हैं कि वो जब 2 साल की थीं तब उनके पिता कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे..तब से वो हर बुर्के वाली महिला से नफरत करने लगी थीं..एक बार तो उसने एक मुस्लिम महिला को मारने की कोशिश भी की थी..तब गुरमेहर की बढ़ती नफरत को कम करने के लिए उसकी मां ने समझाया कि उसके पिता को पाकिस्तान ने नहीं बल्कि युद्ध ने मारा है...ये बात गुरमेहर के दिलो दिमाग में घर कर गई..और तबसे उसने शांति के लिए अभियान शूरू कर दिया...इस अभियान में गुरमेहर का साथ दिया एक पाकिस्तानी युवक ने...दोनों देशों में शांति की इसी कोशिश के लिए गुरमेहर को इतनी गालियां दी गईं...युद्ध के बजाय शांति की बात करना कब से गलत हो गया है..पीएम मोदी किसी को बिना बताए अचानक पाकिस्तान घूम आते हैं..ऐसे में सवाल ये कि क्या वो पाकिस्तान जंग की बात करने गए थे...या जंग कब शुरू करनी है ये पूछने गए थे...नहीं शायद वे भी रिश्ते बेहतर करने की कोशिश में गए थे....गुरमेहर को समर्थन करने वालों को पाकिस्तान भेजने वाले हरियाणा के मंत्री जी बताएंगे कि दोनों देशों के बीच शांति के सबसे बड़े हिमायती अटल बिहारी वाजपेयी को वे कहां भेजेंगे...आज नफरत की बात करने वालों को वाजेपेयी की ही एक कविता की कुछ पंक्तियां फिर से याद करने की और हमेशा याद रखने की जरूरत है-

भारत-पाकिस्तान पड़ोसी, साथ-साथ रहना है
प्यार करें या वार करें दोनों को ही सहना है
तीन बार लड़ चुके लड़ाई कितना महंगा सौदा है
रूसी बम हों या अमरीकी, खून एक बहना है

गुरमेहर ने शांति के लिए शुरू किया गया अपना अभियान बंद कर दिया है...और वो दिल्ली छोड़कर चली गई हैं..ये हार गुरमेहर की नहीं है ये हार आपकी है हमारी है हम सब की है...क्योंकि देश के कुछ लोगों ने बोलने की आजादी के अधिकार का क़त्ल किया...देश के गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने भी गुरमेहर की बोलने की आजादी को दिमाग की गंदगी करार दिया था...रिजिजू ने एक बार भी एबीवीपी की मारपीट की आलोचना नहीं की....आए दिन यूनिवर्सिटी में एबीवीपी छात्रों द्वारा मारपीट की ख़बरें आती रहती हैं और फिर बहस एबीवीपी की हिंसा से दूर हटकर कश्मीर, जेएनयू और देशद्रोह पर आकर खत्म हो जाती है..और कुछ दिनों बाद एक बड़ा सा तिरंगा लेकर RSS और ABVP के लोगों द्वारा तिरंगा यात्रा निकाली जाती है..और उस तिरंगे के नीचे दब जाती है..एबीवीपी की हिंसा उसकी गुंडागर्दी...RSS का तिरंगा प्रेम भी पिछले कुछ सालों में अचानक से बढ़ा है...ये वही RSS है जिसके नागपुर कार्यायल में आजादी के बाद कई सालों तक तिरंगा नहीं फराया गया...पहली बार 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने नागपुर में तिरंगा फहराया था..दरअसल तिरंगा आजादी का प्रतीक है..और आज उसी आजादी को तिरंगा दिखाकर दबाया जा रहा है...शायद गुरमेहर ने चुप होने का फैसला लेकर ठीक ही किया क्योंकि जब हर तरफ नारों का शोर हो...तब इंसान चुप रहकर भी बहुत कुछ बोल जाता है...शायद इसीलिए कथाकार शैवाल ने कहा है-

क्रांति महज़ इतना नहीं की उठालो शस्त्र या बोल दिया नारा
चुप रहो और बोलो अपनी चुप्पी में
लड़ो पर प्रेम करो सारी सृष्टि से सारे समुदाय से
क्योंकि समूह का प्रेम ही क्रांति है...